कविता सामाजिक सशक्तिकरण

कैसे जन्म दूं कविता?

डॉ. सांत्वना श्रीकांत II

तुम्हें कैसे जन्म दूं कविता,
पहले उस प्रसव पीड़ा से
मुझे गुजरने तो दो,
जिससे जन्मती है कविता।
कुम्हार की चाक पर
मिट्टी सा मुझे गढ़ने दो
फिर आग में झोंक कर
कुछ दिन पकने तो दो,
फिर रचूंगी कोई कविता।
ब्रह्मांड की परिक्रमा कर
मुझे आने दो अभी,
तारों और पृथ्वी का तालमेल
तो समझने दो।
प्रेमिकाओं का विरह जीने दो,
प्रेम में लालायित होने दो,
प्रेमी के प्रथम स्पर्श का
अहसास तो होने दो,
फिर रचूंगी कविता।
बच्चों को पहला कदम रखते हुए
मुझे निहारने दो,
आत्मा को मोक्ष प्राप्ति तक के
क्षण को महसूस करने दो,
अभी तो असफलता की
पगडंडियों पर सजगता से
चल रही हूं मैं,
जरा ठोकर खाकर
मुझे गिरने तो दो,
फिर रचूंगी कोई कविता।
सबकी मनमानियों से
लड़ लेने दो मुझे
थोड़ा रो लेने दो,
चाटुकारिता करके
सफल हो गए
औसत दर्जे के लोग,
अपने भाग्य पर मुझे
सुबक लेने दो।
एकाकी हो जाने पर
दम घुटने से पहले,
तकिए के नीचे से निकालूंगी
कई सफेद पर्चियां,
उन पर जन्म दूंगी तुम्हें
ठहरो जरा
इंतजार तो कर लेने दो।

मेरे लिए कविता

कविता-
जब समाप्त हो जाएगी,
तब तुम्हें मेरी चीखें
सुनाई देंगी
सन्नाटे में गूंजती हुईं।
दरअसल, कविता
सोखती रहती है
मेरे दुख और आंसू।

विश्व कविता दिवस पर दो कविताएं

About the author

santwana

सशक्त नारी चेतना के स्वर अपनी कविताओं में मुखरित करने वाली डाॅ सांत्वना श्रीकांत का जन्म जून1990 में म.प्र. में हुआ है।सांत्वना श्रीकांत पेशे से एक दंत चिकित्सक हैं। इनका प्रथम काव्य-संग्रह 'स्त्री का पुरुषार्थ' नारी सामर्थ्य का क्रान्तिघोष है।

इनकी कविताएँ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं- गगनांचल, दैनिक भास्कर,जनसत्ता आदि में प्रकाशित होती रहती हैं।

साथ ही वे ashrutpurva.org जो कि साहित्य एवं जीवनकौशल से जुड़े विषयों को एक रचनात्मक मंच प्रदान करता है, की संस्थापिका एवं संचालिका हैं।

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