कविता सामाजिक सशक्तिकरण

हर पतंग कुछ कहती है…

रश्मि वैभव गर्ग II

हर पतंग नील गगन से कुछ कहती है…
किसी पतंग के कटने से कहां अंबर झुका है
किसी मांझे के टूटने से कहां चांद मिला है…
हर पतंग नील गगन से कुछ कहती है…।
कितना मुश्किल है, यूं आसमान में उड़ना,
कितना मुश्किल है, यूं खुद में खुद को बचाए रखना।

हर पतंग नील गगन से कुछ कहती है…
पतंगों से भरे आसमान में,
रंगों से सजे नीलगगन में।
कितना मुश्किल है, खुद के रंग को बताना…
हर पतंग नीलगगन से कुछ कहती है…।

क्षणिक जीवन में अल्हड़, चंचल हिरनी सी,
उदास कुहासे में जीवन की मीठी आस सी,
हर पतंग नील गगन से, कुछ कहती है…।
जरूरी नहीं कि जीवन लंबा ही हो,
विजयी वही है, जिसने दांव लगा कर पेच लड़ा हो…
हर पतंग नील गगन  से कुछ कहती है…।

जीतना और हारना तो नियति है खेल की,
अपने जीवन से खेलना,
अनोखी प्रवृत्ति है पतंग की,
हर पतंग नील गगन से कुछ कहती है…।
कितना मुश्किल है, मैदान-ए-जंग में कट कर गिरना,
नवयौवना का फिर से, जीवन  युद्ध का लड़ना…
हर पतंग नील गगन से कुछ कहती है…।

पतंग प्रतीक है उमंग का, उल्लास का,
पतंग प्रतीक है, टूट कर जुड़ने का,
हर पतंग, कुछ कहती है…।

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