बाल कविता बाल वाटिका

मां के आंसू

राकेश धर द्विवेदी

स्कूल जाते बच्चों की मां
उठ जाती है भोर में
बच्चों का टिफिन
झटपट कर देती है तैयार,
नहला-धुला और दुलार कर  
बैठा देती है उन्हें रिक्शे या बस पर।

स्कूल जा रहे बच्चों की मां
सुनिश्चित करती है कि
बच्चे ने खाया है कि नहीं टिफिन,
वह नहीं खाती एक कौर
बच्चों को खिलाए बिना,
वह होम वर्क कराती है
बच्चों के अच्छे ग्रेड के लिए
ईश्वर से करती है मिन्नतें।

वह नहीं जानती कि उसके बच्चे
पढ़ते हैं उस स्कूल में
जहां बिना किसी ग्रेड के
पढ़ाया जाता है सबकुछ।

फिर धीरे-धीरे उसके बच्चे
होते जाते हैं बड़े
और एक दिन विदा कर देती है
उन्हें सुदूर देश या शहर में,
छुपा लेती है अपने आंसुओं को
अपने आंचल में जो
सहसा उसके आंखों से बह कर
कपोलों पर लिख देते हैं कोई कविता।

बच्चों तुम उन कविताओं को
पढ़ने की चेष्टा करना।
दुनिया की सबसे सर्वोत्तम कविताएं
तुम्हें उन पर लिखी मिलेंगी।

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ashrutpurva

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