राकेश धर द्विवेदी II
कोयल अब कूं-कूं नहीं करती
गौरेया भी नहीं फुदकती दिखती
न ही सुनाई देती
मैना की मनमोहक बातें।
बुलबुल के चुलबुलेपन की
केवल रह गई हैं यादें
मिट्ठू अब मीठी बातें
नहीं सुनाते हैं।
मोर तो सपने में भी
अब नहीं आते हैं।
मां तुम बतलाओ ना
तुम कब तक इनकी,
कहानियां सुनाओगी?
वास्तविकता से कब मेरा
परिचय कराओगी?
क्या अब केवल कहानी के पात्र है
या फिर पूर्णिमा के चांद हैं
और कोई बीती हुई बात है?
इस हकीकत को मुझे
समझाओ ना।
मां एक बार बतलाओ ना।