कविता सामाजिक सशक्तिकरण

मां एक बात बतलाओ ना

राकेश धर द्विवेदी II

कोयल अब कूं-कूं नहीं करती
गौरेया भी नहीं फुदकती दिखती
न ही सुनाई देती
मैना की मनमोहक बातें।

बुलबुल के चुलबुलेपन की
केवल रह गई हैं यादें
मिट्ठू अब मीठी बातें
नहीं सुनाते हैं।

मोर तो सपने में भी
अब नहीं आते हैं।
मां तुम बतलाओ ना
तुम कब तक इनकी,
कहानियां सुनाओगी?
वास्तविकता से कब मेरा
परिचय कराओगी?

क्या अब केवल कहानी के पात्र है
या फिर पूर्णिमा के चांद हैं
और कोई बीती हुई बात है?
इस हकीकत को मुझे
समझाओ ना।
मां एक बार बतलाओ ना।

About the author

राकेश धर द्विवेदी

राकेश धर द्विवेदी समकालीन हिंदी लेखन के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे कवि हैं तो गीतकार भी। उनकी कई रचनाएं प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। द्विवेदी की सहृदयता उनकी रचनाओं में परिलक्षित होती है। उनकी कुछ रचनाओं की उपस्थिति यूट्यूब पर भी देखी जा सकती है, जिन्हें गायिका डिंपल भूमि ने स्वर दिया है।

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