सांत्वना श्रीकांत II
मैं हर बार
प्रतिस्पर्धा में भाग लेकर
अव्वल आऊंगी,
नहीं चाहती कोई पक्षपात,
तुम्हारी प्रिय होने की वजह से।
तुम निरपेक्ष ही रहना
तटस्थ होकर चुनना
प्रतिभा और समर्पण।
इतिहास के साक्ष्य जुटाना
मेरा सौंदर्य मत निहारना।
मेरी तरल सच्चाई को
परखना तुम।
मैं कविता हूं तुम्हारी-
मेरे अर्थों को महसूसना तुम।
मैं अपना स्वप्न बीज सौंपूंगी
अपने किए पुण्य के लेखा में
उतार लेना (लिखना) तुम।
