अश्रुत पूर्वा II
नई दिल्ली। आजकल दुनिया भर के युवाओं में खुद को चोट पहुंचाने की प्रवृत्ति आम हो गई है। अध्ययन बताते हैं कि 18 साल की उम्र में पहुंचने तक लगभग हर पांच में से एक किशोर में यह प्रवृत्ति पाई जाती है। जबकि अस्पतालों के आपातकालीन विभाग में किशोरों में आठ में से केवल एक ऐसा मामला सामने आता है। खुद को चोट पहुंचाने के लिए अस्पताल में भर्ती होना भविष्य में खुदकुशी के जोखिम का एक प्रमुख कारण बनता है।
पिछले दिनों एक अध्ययन में खुद को चोट पहुंचाने के कुछ कारणों की पहचान की गई, जिसमें अस्पताल से मिली सूचना के साथ अन्य जानकारियों जैसे स्कूल में उपस्थिति, विशेष शैक्षणिक आवश्यकता और स्कूल में मिलने वाले निशुल्क भोजन की परिस्थितियों को शामिल किया गया है। खुद को चोट पहुंचाना ऐसा है, जो किसी भी चीज से प्रेरित हो सकता है। आमतौर पर लोग दवा की ज्यादा खुराक ले लेते हैं या फिर अपने शरीर के किसी अंग की नस काट कर घाव कर लेते हैं।
एमिली विडनल, ब्रिस्टल विश्वविद्यालय और जे डाउन्स, किंग्स कॉलेज लंदन के अध्ययन में पाया गया कि खुद को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति ऐसे युवाओं और किशोरों में लगभग तीन गुना ज्यादा होती है, जिन्हें आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर (एएसडी) था। यों एएसडी का खतरा लड़कियों में कम देखा गया है। ऐसा इसलिए हो सकता है कि क्योंकि लड़कियों में एएसडी का पता नहीं चल पाता। आम तौर पर खुद को चोट पहुंचाने का खतरा लड़कों के मुकाबले लड़कियों में अधिक दर्ज किया गया है।
अध्ययन में पाया गया कि जो किशोर स्कूल नहीं जाते, उनमें खुद को चोट पहुंचाने का खतरा कहरीं अधिक होता है। स्कूल में जिनकी उपस्थिति 80 फीसद से कम होती है, उनमें खुद को चोट पहुंचाने का खतरा उन किशोरों की तुलना में तीन फीसद अधिक होता है, जिनकी उपस्थिति 80 फीसद से ज्यादा होती है। (एजंसी की खबरों पर आधारित)
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