आज देना चाहता हूं तुम्हें
जिंदगी के पांच रंग,
जानती हो न तुम,
मैं अकसर क्यों तोड़ लाता हूं
इंद्रधनुष तुम्हारे लिए
अपनी कविताओं में?
तो सुनो …
श्यामल रंग प्रिय है मुझे,
लेकिन इस रंग से
रंगूंगा नहीं कभी,
क्योंकि इसी रंग में
गुम हो जाना है मुझे
एक दिन बिछड़ कर तुमसे।
यकीन करो फिर भी
मैं रहूंगा हमेशा
तुम्हारी पलकों के नीचे
काजल बन कर।
श्वेत भी नहीं दूंगा तुम्हें,
क्योंकि यह रंग है मुक्ति का
और तुम्हें मुक्त नहीं होना है
और मुझसे तो
कभी भी नहीं।
जब भी पहनोगी तुम
कोई सफेद परिधान,
उसकी धवलता में
मुझको ही पाओगी,
खुद को संपूर्ण पाओगी।
यह रंग बहुत प्रिय है मुझे,
चाहो तो इसे चुरा लेना।
मैं आज देना चाहता हूं-
हरा रंग तुम्हें
ताकि जब भी गाओ
प्रकृति का कोई गीत,
तुम्हारे हृदय में छा जाए
एक अप्रतिम हरियाली,
तुम संवार देना
इस धरती का भविष्य।
मैं आज देना चाहता हूं-
लाल रंग तुम्हें,
जो भरे तुम में नई ऊर्जा
और अथक चलती रहो तुम
अपने लक्ष्य की ओर।
जीवन की रणभूमि पर
युद्ध करने जब निकलना
तो इस लाल रंग को हमेशा
संभाल कर रखना।
मैं आज देना चाहता हूं
नीला रंग तुम्हें,
इससे रंग देना चाहता हूं
तुम्हारे कोमल गालों को,
ताकि छिपा सको
अपने भीतर का तूफान,
बहा सको मन में प्रेम की
अविरल खामोश नदी।
तुम दे सको इस दुनिया को
शांतिप्रियता का नया संदेश,
थाम सको कोलाहल,
भर सको शीतलता
दुखी जन-मन में।
आज तुम्हारी हथोलियों पर
भर देना चाहता हूं
चटकता पीला रंग
ताकि पसार सको
सोने सी गेहूं की बालियां
इस हरी-भरी धरती पर।
पक कर तैयार फसलों पर
बिछा सको तुम पीली चादर।
एक रंग छुपा कर
रखा था बरसों से,
आज देना चाहता हूं-
वह रंग गुलाबी।
रंग देना चाहता हूं इससे
तुम्हारे उदास दिल को
ताकि घुमड़ते बादलों के
पार जाकर बरसा सको
सबके लिए खुशी का रंग
दे सको प्रेम का पैगाम।
मैं आज देना चाहता हूं
आसमानी रंग तुम्हें
ताकि बना सको एक आकाश
अपने लिए भी,
जहां पंख पसार उड़ सको,
छू सको सुनहरे सपनों को,
कर सको मनमर्जियां भाी
अपनी खुशी के लिए कभी।
इस पार से उस पार
जहां मैं अकसर
खींच लाता हूं इंद्रधनुष
सिर्फ तुम्हारे लिए।
सुनो-
मैं न रहूं कभी तो
इन रंगों में और
चटकते फूलों में मिलूंगा,
उन शब्दों में मिलूंगा
जो तुम्हारे लिए रचे।
और उन पांच रंगों में भी मिलूंगा
जो आज मैंने तुम्हें दिए।
रंग लेना आज
तुम को खुद को।
- लेखक संजय स्वतंत्र के काव्य संग्रह से
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