ग़ज़ल/हज़ल

ये इक दीवार सी जो है गिरा दो आज होली है

फोटो- साभार गूगल

मनस्वी अपर्णा II

तुम्हारे रंग में तन-मन भिगा दो आज होली है
मुहब्बत की रिवायत है निभा दो आज होली है

बुलाती है तुम्हें हर सांस धड़कन की सदाओं से
झलक अपनी जरा सी तो दिखा दो आज होली है

चढ़े ये रंग कुछ ऐसे कभी उतरे नहीं चढ़ कर
सुनो कुछ इश्क पानी में मिला दो आज होली है

मिलाओ देर तक मेरी नजर से यूं नजर अपनी
हया के रंग से चेहरा खिला दो आज होली है

बहक जाता है ये तन मन तुम्हारे पास आते ही
नशे में झूम लेने दो पिला दो आज होली है

जरा सी जिंदगी है दूरियों में क्यूं गंवाएं हम
ये इक दीवार सी जो है गिरा दो आज होली है

चलो मिल जाएं हम ऐसे कि जैसे रंग मिलते हैं
ये सारे फासले बढ़ कर मिटा दो आज होली है

About the author

मनस्वी अपर्णा

मनस्वी अपर्णा ने हिंदी गजल लेखन में हाल के बरसों में अपनी एक खास पहचान बनाई है। वे अपनी रचनाओं से गंभीर बातें भी बड़ी सहजता से कह देती हैं। उनकी शायरी में रूमानियत चांदनी की तरह मन के दरीचे पर उतर आती है। चांद की रोशनी में नहाई उनकी ग़ज़लें नीली स्याही में डुबकी ल्गाती है और कलम का मुंह चूम लेती हैं। वे क्या खूब लिखती हैं-
जैसे कि गुमशुदा मेरा आराम हो गया
ये जिस्म हाय दर्द का गोदाम हो गया..

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