बाल कविता

चन्दा मामा से सवाल

फोटो : साभार गूगल

संतोष बरमैया II

चन्दा मामा आओ छत पर,
पूछूँ एक सवाल।
कैसे अपना रूप बदलते,
कैसे अपनी चाल।।
चंदा मामा,,, चंदा मामा,,

पूनम में रोटी के जैसे,
दिखते पूरब ओर।
चाँदी जैसी चटक चाँदनी,
लगते हो चितचोर।
अच्छा आज बताओ हमको,
चंद्रग्रहण का काल।
मानव-दानव संत गुरु सब,
साधक मालामाल।
चन्दा मामा आओ छत पर,
पूछूं एक सवाल।

पश्चिम में तुम आते मामा,
हँसिये का ले रूप।
हँसी ठिठोली करते हो तुम,
हँसते रहते खूब।
तुम निकलो तो ईद मनाये,
जुम्मन करे धमाल।।
मीठी-मीठी मस्त सिवईयां,
बाँटे भर-भर थाल।।
चन्दा मामा, आओ छत पर,
पूछूं एक सवाल।।

लुका-छिपी खेला करते हो,
पन्द्रह-पन्द्रह रात।
फिर घटते हो, फिर बढ़ते हो,
कला कहो क्या खास?
रात चौथ की क्या लिखते हो
माता के तुम भाल।
क्या दे जाते हो चुपके से,
माता को हर साल।।
चन्दा मामा आओ छत पर,
पूछूं एक सवाल।

चन्दा मामा आओ लेने,
चलें तुम्हारे साथ।
अंतरिक्ष मे भ्रमण करेंगे,
ले हाथो में हाथ।।
मैं तुम हम सब गर मिल जाएं,
कर जाएं कमाल।
अपनी मंजिल को पाएंगे,
जीवन मे हर हाल।।
चन्दा मामा आओ छत पर,
पूछूं एक सवाल।

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संतोष बरमैया

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