डिम्पल राठौर II
झूठ
॰॰॰
जो झूठ के
प्रशंसक होते हैं
वे सत्य से सदैव
आँखें चुराते हैं
॰॰॰
झूठ
आत्मा पर धरा
पत्थर होता है
जो ज़मीर को
डुबोता रहता है
धीरे-धीरे
॰॰॰
झूठ
कितनी ही
सफ़ाई से कहा जाये
उसके उजलेपन के नीचे
कालिख पुती होती है
॰॰॰
झूठ
परेशान भी रहता है
अन्तत: पराजित भी होता है
झूठ की दुनिया
सत्य की छोटी सी
चिन्गारी से भी
खाक हो सकती है
॰॰॰
झूठ की सीढि़यों से
चढ़कर
झूठ की इमारतें ही खड़ी की जाती है
झूठ की इबादतें ही लिखी जाती है
पर उनके बंद गवाक्षों पर
सदा सत्य दस्तक देता रहता है
॰॰॰
झूठ की बुनियाद
खोखली होती है
सत्य का एक झोंका
उसे ढहा देता है
॰॰॰
झूठ भी एक
मनोविकार ही है
तभी उसका
तिरस्कार है
॰॰॰
झूठ पर
सदा सत्य की तलवार
लटकी रहती है
॰॰॰
झूठ
तसल्ली देता है ख़ुद को
कि मेरे साथ
कितने खड़े है
और सत्य कितना
तन्हा है
पर झूठ के झांसे जानते हैं
सत्य तन्हा नहीं
सदा
ताकतवर ही होता है
Leave a Comment