शिवांकित तिवारी “शिवा” II
मेरा दिल जब-जब घबराया,
याद तुम्हारी आई है माँ,
जब-जब है सूनापन छाया,
याद तुम्हारी आई है माँ,
घर से निकले कदम अभागे,
जब भी तुम्हें छोड़कर भागे,
ना जाने कब नींद लगी फ़िर,
ना जाने फ़िर कब तक जागे,
जब भी रोते अश्रु छुपाया,
याद तुम्हारी आई है माँ,
बाबूजी का हाथ पकड़कर,
कदम बढ़ाया चलना सीखा,
सभी मुश्किलों से डटकर के,
तुमसे ही माँ लड़ना सीखा,
जीवन ने जब भी उलझाया,
याद तुम्हारी आई है माँ,
विपदाओं ने जब भी घेरा,
जब भी छाया घना अंधेरा,
जीने की ना आस बची जब,
तब दिखलाया नया सवेरा,
संग जब कोई नज़र ना आया,
याद तुम्हारी आई है माँ,
तेरी गोद में सर रखकर माँ,
मैंने घूमी दुनिया सारी,
तेरे सिवा है,सबकुछ नकली,
दुनिया सारी, दुनियादारी,
तुम्हें छोड़कर जब मैं आया,
याद तुम्हारी आई है माँ,
जब दुनिया ने मुझे नकारा,
सब लोगों ने किया किनारा,
तूने ने आकर गले लगाकर,
आंसू पोंछे, दिया सहारा,
जब-जब दुनिया ने ठुकराया,
याद तुम्हारी आई है माँ,
बाहर आकर के अब जाना,
तेरे बिन है सृष्टि अधूरी,
संग तेरे ना होने पर अब,
जाना माँ है कितनी जरूरी,
माँ ममता कोई जान ना पाया,
याद तुम्हारी आई है माँ,
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