राधिका त्रिपाठी II
खूबसूरती हो गर बला की तो क्या मतलब?
खूबसूरत जिस्म कब किसी के काम आया!!
कहते हैं काया और माया पर कभी किसी को भरोसा नहीं करना चाहिए और न ही इन दोनों पर कभी किसी को घमंड करना चाहिए। दोनों कब आपका साथ धोखा देकर छोड़ दें, कोई भरोसा नहीं। सबसे ताकतवर समय ही है
जो आपको निर्बल और सबल दोनों बनाता है। हम जीवन के पथ पर जब तक जीवित है तब तक यात्रा में रहते हैं, फिर एक दिन यात्रा समाप्त कर इस छलावे से दूर चले जाते हैं। लेकिन इस संसार से जाने से पूर्व हम दीया बन कर जाएं। दूसरों की जिंदगी में कुछ प्रकाश भार कर जाएं तो बेहतर होगा। खुद को माटी मान कर जीवन को दीए का आकार दें और समर्पण रूपी बाती बना कर अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से इस संसार को रोशनी से भार दें। यही मनुष्यता है।
अकड़ किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती। चाहे जुबान की हो या शरीर की। प्राण निकलने के बाद मुर्दा जिस्म अकड़ जाता है और माटी में दफन कर दिया जाता है अंतत: माटी का शरीर माटी में मिल जाता है। फिर अहंकार किस बात का। कुछ भी तो स्थायी नहीं इस संसार में।
सत्य ही कहा कबीर ने –
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रोंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा मैं रौदूंगी तोय।
जब हम सभी को जाना है इस संसार से, तो जाने के पहले इस संसार को प्रेम से सींच दें। अपनेपन की परिभाषा से परिभाषित कर दें, प्रेम बांटें। प्रेम करें और सिखाएं औरों को भी प्रेम करना। इस दौर में प्रेम और सद्भाव की बहुत कमी हैं लोगों में।
- अकड़ किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती। चाहे जुबान की हो या शरीर की। प्राण निकलने के बाद मुर्दा जिस्म अकड़ जाता है और माटी में दफन कर दिया जाता है अंतत: माटी का शरीर माटी में मिल जाता है। फिर अहंकार किस बात का। कुछ भी तो स्थायी नहीं इस संसार में।
अपनेपन से वंचित लोगों को अपना बनाएं और उन्हें गले लगाएं। दूसरों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया जाए। जरूरी नहीं कि यह मदद पैसों की हो। श्रम दान, समय दान, वस्तु दान, ज्ञान का दान या फिर मरणोपरांत शरीर का दान हो। जैसे ऋषि दीधिचि ने किया था मनुष्य के कल्याण के लिए। वैसा ही हम भी करें। मृत्युपरांत भी लगभाग हमारे अंग छह घंटे तक जीवित रहते है। कुछ अंग तो चौबीस घंटे तक जीवित रहते हैं। कहते हैं कि अंगदान महादान हैं। इसलिए माटी में मिलने से पूर्व माटी में मिलती जिंदगियों को सांसें प्रदान करने की कोशिश किया जाए।
कवि हरिवंश राय बच्चन ने सत्य ही कहा है-मृदु मिट्टी के बने हुए मधुघट फूटा ही करते हैं,
लघु जीवन लेकर आए हैं प्याले टूटा ही करते हैं।

…तो जीवन रूपी प्याले तो टूट ही जाएंगे और माटी का तन माटी में एक दिन मिल ही जाएगा। जरूरी यह है कि हम इस संसार को क्या देकर जा रहे हैं।
मनुष्य का जीवन कई चरणों और कई योनियों को पार करने के बाद हमें मिला है तो इस जीवन की सार्थकता सिद्ध हो। हमें ऐसा कुछ इस संसार के लिए करके जाना चाहिए। किसी को गले लगा कर, किसी की पीठ थपथपा कर तो किसी के गालों को हौले से सहला कर अपनेपन की छाप छोड़ते हुए जीवन को अलविदा कहना चाहिए।
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