संजय स्वतंत्र II
कभी सोचा है आपने कि जब आप उदास होते हैं, तो आपके साथ कौन होता है? दोस्त, भाई, पत्नी-बच्चे, रिश्तेदार या कोई आत्मीय साथी। कुछ को इनका साथ मिल जाता है तो कई बिल्कुल अकेलेपन का शिकार होते हैं। अवसाद में बदलता यह अकेलापन इतना खतरनाक है कि यह बेचैनी हर जगह बढ़ने लगी है। दरअसल, अब कोई किसी से बात नहीं करता। क्योंकि सब व्यस्त हैं। किसे फुर्सत है आपकी बात सुनने की।
मैं बहुत ज्यादा आंकड़े में नहीं जाऊंगा। मगर यह तथ्य है कि हम अमेरिका और चीन से भी ज्यादा उदास देश हैं। साल 2020 का आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन का है जब भारत में 18 से 24 साल के युवा अवसाद के शिकार थे? जबकि 2022 में यह आंकड़ा 16.8 फीसद हो गया। हाल में जारी आंकड़े में भी हाल जस का तस है। दो साल पहले यूनिसेफ का भी एक अध्ययन सामने आया था। इसमें कहा गया था कि भारतीय युवा मानसिक तनाव पर किसी से भी बात करने से हिचकते हैं। कमोबेश यही स्थिति हम सब के साथ है।
ऐसी स्थिति क्यों है? दरअसल, हमारे यहां मानसिक स्वास्थ्य की बहुत उपेक्षा होती है। समाज अवसादग्रस्त लोगों को अजीब-अजीब नाम देने लगता है। जैसे- वह तो पागल है। वह तो मेंटल है। या वह तो बड़ा रुखा सा शख्स है। हम कभी ये नहीं सोचते कि इसके पीछे क्या वजह रही होगी। ऐसा भी नहीं है कि अवसाद दूर नहीं किया जा सकता। यह भी एक सच है कि हर व्यक्ति में अवसाद के अलग-अलग लक्षण होते हैं। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े चिकित्सकों का भी यह मानना है कि अवसाद के लक्षणों को पहचानना और आत्महत्या के मामलों को रोकना जटिल कार्य है।
कई बार जीवन की कठिन चुनौतियां हमें धीरे-धीरे उस समय अवसाद में ले जाना शुरू करती हैं जब आप उनसे मुकाबला नहीं कर पाते। इसी तरह जब आप दूसरे लोगों से आर्थिक-सामाजिक रूप से पिछड़ने लगते हैं तो निराश होने लगते हैं। बेरोजगारी की हालत में या फिर दफ्तर और घर में आप हाशिए पर जाने लगते हैं तब जीवन के प्रति आपकी सोच नकारात्मक होने लगती है। ऐसे में आप हंस कर या मुस्कुरा कर अपनी भावनाएं छुपाने की कोशिश तो करते हैं मगर तब तक डिप्रेशन आपको घेर चुका होता है।
ज्यादातर लोग अब एकांतप्रिय हो रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह मोबाइल भी है। इस छोटे से यंत्र में इतना कुछ है कि आप बाहर की दुनिया से कट जाते हैं। किसी से अपने मतलब जितना संवाद करते हैं। अब तो घर में चार सदस्य चार कोने में बैठे रहते हैं। आज से 20 साल पहले यह हाल नहीं था।
ऐसा भी नहीं है कि अवसाद से हम बाहर नहीं निकल सकते। अगर लगता है कि कोई अपना या मित्र-रिश्तेदार अवसाद में है तो उससे बात कीजिए। उसका दुख बांटिए। उसे समझा-बुझा कर मनोचिकित्सक के पास ले जाइए। सामाजिक मेल-जोल से और लगातार संवाद बना कर उसे उदासी के अंधकार से बाहर निकाला जा सकता है। अगर आप स्वयं इस स्थिति से गुजरें तो परिवार को अवश्य बताएं। उनके बीच रहें। खास दोस्त को बताएं। पति-पत्नी के रिश्ते में आई खटास को बड़े-बुजुर्ग दूर करने में मदद कर सकते हैं। परिवार में विघटन हो गया हो तो सप्ताह में एक दिन सब साथ खाना खाएं। एक दूसरे का हाल पूछें।
क्या करें जब आप अवसाद में आ जाएं? इसके लिए सुझाव है कि योग और प्राणायाम करें। मेडिटेशन करें तो और भी अच्छा। सुबह शाम पार्क में टहलें। संगीत सुनें अपनी पसंद का। इससे मन शांत रहता है। हार्मोमल सुंतलन बना रहता है। अवसाद की स्थिति में उन स्थितियों से दूर रहना चाहिए जिनसे मानसिक आघात पहुंचता हो। बेहतर होगा कि संतुलित आहार लें। फलों की मात्रा यथासंभव बढ़ा दें। चिकित्सकों के मुताबिक विटामिन बी-12 सेरोटोनिन बनाता है जो हमारे मूड को सही रखता है। होमियोपैथी में भी अच्छी दवाइयां हैं।
कोई ऐसा मित्र जरूर हो जिससे आप निसंकोच बात कर सकें। किसी के प्रति अपने मन में कोई धारणा मत बनाइए। कौन क्या है, समय बता देता है। कोई न मिलें तो अपने घर पौधे लाइए। उनकी देखभाल कीजिए। उनसे बात कीजिए। मैं तो अपने घर में क्रिसमस ट्री से भी बात कर लेता हूं। एक पौधे को तो पानी देते हुए उसे गले लगा लेता हूं। उसकी पत्तियों को सहला देता हूं। इन दिनों देख रहा हूं कि वह मुझसे भी ज्यादा खिल उठा है। उसकी पीली पत्तियां हरी हो रही है। उदासी ऐसे भी दूर होती हैं।