गद्यानुवाद Translation

अन्ना केरेनिना उपन्यास का सारांश

 लियो टालस्टाय II

अन्ना केरेनिना के जीवन की त्रासदी यही थी कि अपनी उम्र  से बीस वर्ष बड़े पुरुष से विवाह की थी जिसके प्रति उसके मन में प्रेम की अनुभूति नहीं पनप सकी। वैवाहिक जीवन का प्रथम आठ वर्ष अन्ना ने इतनी तन्मयता से गुजारा कि उसे पति की निष्ठा, समर्पण, एकनिष्ठता का ध्यान ही न रहा। वह अपनी धुन में वैवाहिक दायित्यों को निभाती रही। कैरनिन एक बड़े सरकारी पद पर कार्यरत था जिसकी दिलचस्पी राजनैतिक विषयों पर वाद-विवाद की अधिक थी। अन्ना  मधुर स्वभाव की आश्चर्यजनक रूप से सुंदरी थी। कैरनिन नीरस स्वभाव का था। अन्ना की हर जरूरत को पूरा करता था किन्तु उसके अन्तर्मन की तुष्टि का उसे तनिक भी खयाल न था। अपने अन्तर्मन के प्यार की अभिव्यक्ति वह अपने आठ वर्ष के बच्चे सेरेजा पर उड़ेल खुद को तृप्त करने का प्रयास करती थी।

   अन्ना का पारिवारिक जीवन बिना किसी बाह्य व्यवधान के चल रहा था और वह अपनी दुनिया में खोयी हुयी थी कि उसके जीवन में अलकसे ब्रांसकी नामक एक संभ्रांत कुल का धनी और रूपवान  मिलिटरी अधिकारी ने प्रवेश कर जीवन गति को बदल दिया। इनकी प्रथम मुलाक़ात मास्को में हुयी थी जिसका कारण अन्ना का भाई आब्लान्सकी था। आब्लान्सकी मास्को में अपनी पत्नी डॉली के प्यार-दुलार संग अपने कई बच्चों के साथ रहता था पर अपने विलास-प्रिय स्वभाव के कारण नयी-नयी स्त्रियॉं से अस्थायी प्रेम संबंध स्थापित करते रहता था। उसका एक प्रेम पत्र डॉली के हाथ लग गया और घर में निर्मित तनाव को सहज करने के लिए डॉली ने अन्ना को मास्को आने के लिए कहा। मास्को स्टेशन पर अन्ना की मुलाक़ात ब्रांसकी से हुयी और प्रथम दृष्टि में दोनों को प्यार हो गया। 

   ब्रांसकी कुछ समय से मास्को आया हुआ था और वह आब्लान्सकी की खूबसूरत साली किटी के प्रति आकर्षित हो चुका था। किटी की उम्र विवाहयोग्य हो गयी थी और उससे विवाह का इरादा रखनेवाले दो व्यक्ति ब्रांसकी और लेविन थे। कान्स्टेंटिन लेविन बत्तीस वर्ष का संभ्रांत घराने का युवक था जो किटी को अपनी सम्पूर्ण आत्मा से चाहता था और उसे स्वर्ग की देवी समझकर भक्तिभाव से प्यार करता था। लेविन को यह प्रतीत होता था कि वह किटी के योग्य नहीं है फिर भी विवाह प्रस्ताव के लिए दृढ़मत था। किटी के माता-पिता अक्सर इन दोनों की चर्चा करते थे। किटी की मां पूर्णतः ब्रांसकी के पक्ष में थी जिसके सुंदर सम्पन्न व्यक्तित्व में एक सुखद और शांत जीवन नजर आ रहा था। किटी के पिता को लेविन दायित्व वहन करनेवाला कर्तव्यपरायण स्नेहशील व्यक्तित्व लगता था। ब्रांसकी की तड़क-भड़क वाली जिंदगी के वशीभूत किटी ने लेविन के विवाह-प्रस्ताव को दुखी मन से अस्वीकृत कर दिया। किटी ब्रांसकी के प्रति यह सोच ली थी कि उचित अवसर पर वह अवश्य  विवाह-प्रस्ताव रखेगा। वह उचित अवसर शहर के विराट नृत्य उत्सव से जुड़ता दिखने लगा। किटी को पूरा विश्वास था कि ब्रांसकी नृत्य उत्सव में उसे साथ लेकर जाएगा किन्तु साथ गयी अन्ना। किटी की सारी आशाओं पर पानी फिर गया। 

    अन्ना को ब्रांसकी के साथ पहली बार अनुभव हुआ कि उसके रूप और भावनाओं की कद्र करनेवाला व्यक्ति मिल गया है। ब्रांसकी को भी लगा कि यह रूप क्षणिक भोग के लिए नहीं है और अन्ना का शील और स्वभाव उसे प्रतिपल रहसयमय लगने लगा। इसके बावजूद भी दोनों के मनोभावों में अंतर था।  ब्रांसकी यथाशीघ्र अन्ना से प्रेम-संबंध बनाने को उत्सुक था अन्ना को समझ आ गयी कि वह अप्रत्याशित रूप से प्रेम का शिकार बनाने जा रही है इसलिए डॉली और उसके पति के बीच समझौता कराकर वह निश्चित समय से पहले अपने पति और बेटे के पास लौटने की तैयारी करने लगी। जिस गाड़ी से वह पीटर्सबर्ग के लिए रवाना हुयी ब्रांसकी भी उसका पीछा करने के लिए उसी गाड़ी में बैठ गया। अन्ना की समस्या बड़ी विकट हो चुकी थी। एक ओर उसका हृदय ब्रांसकी का प्रेम पाने के लिए लालायित हो चुका था दूसरी ओर वह भयग्रसित भी थी। कड़े शब्द कहकर उसने ब्रांसकी को हतोत्साहित करने का असफल प्रयास किया। शायद ब्रांसकी यह भाँप गया था कि ऊपर से चाहे वह कुछ भी बोले पर अंदर से उसे चाहती है। अन्ना जानती थी कि एक बार ब्रांसकी के प्रेम के प्रति आत्मसमर्पण कर देने से उसके इतने वर्षों के जीवन की शृंखला टूट जाएगी और अशांति और अव्यवस्था उसे धर दबोचेगी। इस प्रकार के तमाम चिंतन-मनन के बावजूद भी वह अपने मन को वश में नहीं कर पाती थी। अन्ततः ब्रांसकी की मनोकामना पूर्ण हो गयी। अन्ना ने लंबे अंतर्द्वंद के बाद आखिरकार स्वयं को ब्रांसकी की वासना की आग में अपनी बलि दे दी। प्रथम पाप-मिलन के बाद विह्वल हो रोयी पर बाद में आदत पड़ गयी। इसके बाद अन्ना के व्यक्तित्व में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया। वह झूठ बोलने और अपने पति को धोखा देने की कला में निपुण हो गयी। ब्रांसकी के साथ उसके गुप्त प्रेम संबंध की जानकारी उसके पति को छोड़ सबको थी। 

   कैरेनिन जैसे अन्यमनस्क व्यक्ति के मन में भी अन्ना के प्रति संदेह उत्पन्न होने लगा जिसे पूर्णता तब मिली जब घुड़दौड़ में ब्रांसकी गिर पड़ा और अन्ना फफक कर रो पड़ी। कैरेनिन ने इस व्यवहार के लिए जब अन्ना को डांटा तब अन्ना ने स्वीकार किया कि वह ब्रांसकी से प्रेम तथा कैरेनिन से घृणा करती है। कैरेनिन मर्माहत हो सोचने लगा कि इस अपमान का बदला चुकाने के लिए उसे क्या करना चाहिए। अन्ना को तलाक दिया जाय या बिना तलाक छोड़ दिया जाये। वह स्वयं पिस्तौल चलाना नहीं जानता था और उसे अपने प्राण का भी भय था। तलाक देने से बदनामी होगी और अन्ना को त्याग देने पर ब्रांसकी रख लेगा और उसकी विजय हो जाएगी। कैरेनिन ऐसा उपाय सोच रहा था जिससे उसकी स्त्री और उसके प्रेमी दोनों को आजीवन दुख उठाना पड़े और तिल-तिल कर जीना पड़े। 

   लेविन के विवाह प्रस्ताव को जब किटी ने अस्वीकृत कर दिया तो वह गाँव में जाकर अपनी जमींदारी की देखभाल करने लगा और किसी देहाती लड़की के साथ विवाह कर जीवन गुजारने की सोचने लगा। अकस्मात एक दिन किटी को देखकर उसकी सोच धाराशायी हो गयी और उसे लगने लगा कि किटी के बिना उसका जीवन अपूर्ण है। ब्रांसकी से जब किटी को धोखा मिला तो ऐसी भावनात्मक चोट पहुंची कि डॉक्टर ने प्राकृतिक परिवेश में ले जाने की सलाह दी और वह आरोग्यवर्धन के लिए अपने माता-पिता संग जर्मनी चली गयी। वहाँ रहकर स्वास्थ्य सुधार हुआ और वह समझ पायी कि उसके हृदय में लेविन ही है। ब्रांसकी के दिखावे की ऐंद्रजालिक मोहपाश से वह खुद को मुक्त करा पायी। लेविन को स्टीवा से  पता चला कि किती का विवाह ब्रांसकी से नहीं हुआ है तो वह उससे मिलने को उत्सुक हो उठा। स्टीवा  ने इस कार्य में लेविन की मदत की।  किटी जब विदेश यात्रा से मास्को लौटी तो स्टीवा ने अपने मित्रों को रात्रि भोज पर आमंत्रित किया जिसमें लेविन भी था। आरंभ में लेनिन और किटी के बीच संकोच की दीवार थी जो शीघ्र ही मिट गयी और दोनों सहज होकर एक दूसरे से बातें करने लगे और समझ गए कि एक-दूजे के लिए चाहत है। दूसरे दिन लेविन ने किटी के घर जाकर विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे किटी ने प्रेमपूर्वक आलिंगन कर स्वीकार किया।  

   कैरेनिन अन्ना को समझाने का प्रयास कर रहा था कि यदि वह ब्रांसकी से गुप्त प्रेम संबंध रखना चाहे तो रखे पर दुनिया को पता न चले। अपने पति की इस कायरतापूर्ण मनोवृत्ति से अन्ना को बेहद दुख हुआ। कुछ समय बाद अन्ना ने एक बेटी को जन्म दिया जो ब्रांसकी की संतान थी। प्रसव के बाद वह बीमार पड़ गई और उसके बचने की आशा न रही। उसके कहने पर कैरेनिन को तार देकर बुलाया गया।  कैरेनिन के आने पर अन्ना ने प्रबल भावुकतावश अपने पिछले व्यवहार के लिए क्षमा मांगी और ब्रांसकी को भी क्षमा करने के लिए कही। उसने अन्ना को क्षमा कर दिया और ब्रांसकी से हाथ मिलाया। ब्रांसकी को इस बात का विशेष दुख हुआ कि पति से क्षमा मांगने के बाद अब अन्ना उसकी नहीं  रही। दुख और ग्लानि से वह इतना विकल हो उठा कि आत्महत्या का असफल प्रयास किया। स्वस्थ होने पर अन्ना की भावुकता जाती रही और अपने पति के प्रति उसके मन में फिर से घृणा उमड़ने लगी। वह समझ गयी कि क्षमा मांगना उसकी भूल थी और ब्रांसकी के बिना उसका जीना संभव नहीं। जब उसने सुना कि ब्रांसकी ने उसके कारण आत्महत्या का प्रयास किया तो वह द्रवित हो उठी। अन्ना से बिछड़ने के बाद खुद को व्यस्त रखने के लिए ब्रांसकी कहीं दूर मिलिट्री अधिकारी के पद पर कार्य करने लगा था। एक महिला मित्र के प्रयास से दोनों का पुनर्मिलन हुआ और अन्ना ब्रांसकी के साथ भागकर इटली चली गयी। 

   अन्ना जानती थी कि इस प्रकार भागने से वह अपने आठ वर्ष के प्यारे पुत्र सेरेजा पर उसका कोई अधिकार नहीं रहेगा। यह वेदना प्रति पल उसके हृदय में शूल की तरह चुभ रही थी। इटली में अन्ना का प्यार उन्मादक रूप धारण कर चुका था और वह उन्मुक्त जीवन का आनंद लेने लगी थी। कुछ समय बाद ब्रांसकी अपने लक्ष्यहीन जीवन से उकताने लगा और अन्ना के साथ रूस लौट आया। समाज की दृष्टि में अन्ना बहुत नीचे गिर गयी थी। यदि उसे पति से तलाक मिल गया होता तो दूसरी बात थी पर बिना तलाक के पर पुरुष के साथ खुल्लमखुल्ला रहनेवाली स्त्री से सबने नाता तोड़ लिया। यह बात ध्यान देने योग्य है कि जब अन्ना पति के साथ रह कर ब्रांसकी से प्रेम संबंध रखती थी तो समाज में उसकी प्रतिष्ठा घटने के बजाय बढ़ गयी थी। अन्ना पीटसबर्ग वापस आने पर इस बात की बहुत चेष्टा की कि एक बार अपने प्राणों से प्रिय पुत्र से मिले। उसकी यह कामना उसकी एक महिला मित्र ने पूर्ण किया तथा सेरेजा के वर्षगांठ पर वह छुपकर उससे मिल पायी तब उसका मुँह चूम-चूम कर खूब रोई।  

   कैरेनिन अन्ना से तलाक के लिए सहमत हो गया था तथा खुद पर दोष लेकर सेरेजा को उसको सौंपने के लिए भी तैयार था। यह सहमति सशर्त थी जिसके अनुसार अन्ना को स्वयं प्रार्थना करनी थी। अन्ना ने अपने पति की इस उदारता में अहं का भाव भरा पाया जो उसके लिए असह्य था और वह उसके कृतज्ञता के भार तले दबना भी न चाहती थी इसलिए प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। अन्ना को समाज की परवाह नहीं थी। उसके लिए ब्रांसकी ही सर्वस्व था। अन्ना के लिए समाज के द्वार बंद थे इसलिए वह अकेले में घुटने लगी इस बीच ब्रांसकी के व्यवहार में भी रूखापन नजर आने लगा। उसके मन में यह संदेह उभरने लगा कि कहीं ब्रांसकी किसी दूसरी स्त्री से प्रेम तो नहीं कर रहा। ब्रांसकी कि माँ इस कोशिश में थी कि प्रिंसेस सोरोकिना नाम की नौजवान लड़की से उसका ब्याह हो जाये। एक दिन सोरोकिना किसी काम से ब्रांसकी से मिलने उसके घर आई और अन्ना ने उसे देख लिया और ईर्ष्या के बवंडर ने उसके मन में हलचल पैदा कर दिया। कुछ समय बाद ब्रांसकी बाहर चला गया। वह जानती थी कि अपनी मां के यहाँ गया होगा जहां वह सोरोकिना से मिला करता था। उसने एक आदमी के हाथ एक पत्र देकर ब्रांसकी को वापस बुलाने के लिए दौड़ाया। विलंब देखकर अधीर अन्ना  स्वयं स्टेशन पर जा पहुँची। प्लेटफॉर्म पर बौराई सी तलाशती घूमती रही और अचानक सामने से आती हुयी गाड़ी के सामने कूद कर दब मर गयी।

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