संजय स्वतंत्र II कभी-कभी लगता है किसेल्फ में बरसों सेधूल खाई किताब जैसाहो गया हूं मैं।मैंने बरसों...
काव्य कौमुदी
उसे घर जाना था
अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’ II गुस्से से छोड़ आई थी घरचार बच्चों की मां, मारपीट, गाली-गलौज से तंग आकरआज...
पिता प्रतिस्थापन है
कुलदीप सिंह भाटी II कभी कमी नहीं लगीपिता पर लिखी कविताओं कीनहीं महसूस हुआ किपिता पर लिखा गया है कम।...
पिता का होना …
पिता का होनाबारिश में छाते का होना हैवृक्ष की जड़ का होना है घर छोड़ने की धमकी भीख़ामोशी सेसुनने...
एक अजीब दिन
आज सारे दिन बाहर घूमता रहाऔर कोई दुर्घटना नहीं हुई।आज सारे दिन लोगों से मिलता रहाऔर कहीं अपमानित...
ओस की बूंदों ने गवाही दी है
तू मेरे इश्क की इबारत हैतू इसे पढ़ न पाई है रात रो रो कर हमने काटी हैदुख में कोई अब न साथी है चांद...
दूर कहीं गूंज उठी शहनाई है
राकेश धर द्विवेदी II रात रो-रोकर कटी है कहीं पर,कहीं सुबह हो रही विदाई है। किसी के अरमानों का गला...
हकीकत आजकल अपनी छुपा कर लौट आते हैं
मनस्वी अपर्णा II सभी के सामने सर को झुका कर लौट आते हैंगलत बातों पे भी हम मुस्कुरा कर लौट आते...
आइए ले चलूं कंक्रीट के जंगल में
राकेश धर द्विवेदी II आइए ले चलूं आपकोकंक्रीट के उस जंगल मेंजहां आप महसूस करेंगेभौतिकता के ताप...
आपकी ये खामोशियां
राकेश धर द्विवेदी II बहुत कुछ हमसे कह गईंआपकी ये खामोशियां…दिल में आकर उतर गईंआपकी ये...
सब कुछ
सदानंद शाही II सब कुछ खत्म होने के बाद भीसब कुछ बचा रह जाता हैसब कुछ के इन्तजार में हम सब कुछ खत्म...
तरु तुम केवल समझ सके हो मेरे मन की पीर
प्रीति कर्ण II सूखी नदियाँ सूखे सागरदुख भरता नित मन की गागरतरल विकल जीवन धारा मेंद्रावकता मन बांध न...
