तू मेरे इश्क की इबारत है
तू इसे पढ़ न पाई है
रात रो रो कर हमने काटी है
दुख में कोई अब न साथी है
चांद आज रात भर रोया है
ओस की बूंदों ने गवाही दी है
सजल नैनों और बंद होठों से
किसी गीत की अवाजाही है
जिसकी पीड़ा के स्वर को सुन
सुबह-सुबह गुलाब मुस्कुराया है।
दर्द का स्वर सीप में पड़ कर
मोती बन कर खिलखिलाया है।
बात मुद्दत से जो थी आंखों में
आज लबों पे उतर अई है।
तू मेरे इश्क की इबारत है
तू इसे पढ़ न पाई है।