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कबीर आज होते तो वैसे ही कठिन सवालों से जूझ रहे होते : पुरुषोत्तम अग्रवाल

अश्रुतपूर्वा II

नई दिल्ली। आलोचक और लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि कबीर आक्रोश, बेचैनी, आध्यात्मिकता की खोज, अस्तित्वादी सवालों से जूझते हुए ऐसे सहृदय कवि हैं, जिनके भीतर व्यवस्था को लेकर कई बवंडर उठ रहे थे। उन्होंने कहा कि कबीर को आज के समय में किसी भी समझदार और संवेदनशील व्यक्ति की तरह उन्हीं सवालों से जूझना पड़ता, जो उनके अपने समय में थे। श्री अग्रवाल जयपुर साहित्य उत्सव में बोल रहे थे।
वरिष्ठ समालोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि आज मूढ़ता समाज का एक सामान्य व्यवहार बनती जा रही है। उन्होंने कहा कि यही वजह है कि कबीर युवा पीढ़ी के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं, क्योंकि वह उस मूढ़ता से बाहर आने की चुनौती देते हैं।
श्री अग्रवाल ने कहा कि कबीर समाज को अपने गिरेबान में झांकने की चुनौती देते थे। इस चुनौती की काल और परिस्थितियों से परे जाकर हर समाज को जरूरत होती है ताकि वह भटकाव से बच सके और इसीलिए निर्गुण कवि वर्तमान समाज में प्रासंगिक बने हुए हैं। संत कबीर के जीवन और कर्म पर साहित्य उत्सव में चर्चा की गई और वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए।
कबीर पर आयोजित सत्र में आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि संत कबीर 15वीं-16वीं सदी में अपने समय द्वारा पेश अस्तित्वादी सवालों, चुनौतियों, और कुछ मूलभूत मानवीय सवालों पर मंथन कर रहे थे, जीवन के उद्देश्य को समझ रहे थे, संगठित धर्म के जाल और आध्यात्मिक क्षुधा के सवालों से जूझ रहे थे। ये सवाल आज भी हमारे सामने हैं, इसलिए कबीर आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं।
कलाविद संजॉय के रॉय के साथ चर्चा के दौरान एक सवाल पर श्री अग्रवाल ने कहा कि कबीर को अपने जीवनकाल में 52 बार कसौटी पर कसा गया। अगर वे आज के समय में भी होते, तो भी उन्हें उसी तरह परीक्षा देनी पड़ती। उन्होंने कबीर के दर्शन, उनकी आध्यात्मिक क्षुधा, धर्म को नकारने के उनके आग्रह और रूढ़िवादिता को चुनौती देने की उनकी जिद की पृष्ठभूमि में कहा कि कबीर व्यक्तिगत चुनाव के हिमायती थे। वे समाज को इस बारे में जागरूक करना चाहते थे कि धर्म एक जाल है और आध्यात्मिकता स्वयं की खोज है। (मीडिया में आए समाचार पर आधारित)

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