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प्रवासी साहित्य सिर्फ पीड़ा का साहित्य नहीं : विजय भारती

अश्रुतपूर्वा II

नई दिल्ली। काजी नजरुल विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष विजय भारती ने बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि प्रवासी साहित्य शोषितों-पीड़ितों की आजादी का साहित्य भी है। अतीत की बात करने वाले का पांव वर्तमान में और दृष्टि भविष्य में रहनी चाहिए।
उन्होंने कई प्रमुख हिंदी रचनाओं की बात की जिनमें विदेशी जीवन का लेखा-जोखा है। भारती पिछले दिनों भारतीय भाषा परिषद और सदीनामा के संयुक्त तत्वावधान में हुए कार्यक्रम में बोल रहे थे। विषय था- प्रवासी साहित्य में भारतीयता। भारतीय भाषा परिषद के सभागार में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हुई।
इस मौके पर एक सत्र में साहित्यकार विजय भारती ने बीज वक्तव्य  दिया। उन्होंने कहा कि प्रवासी साहित्य शोषितों-पीड़ितों की आजादी का साहित्य भी है। उन्होंने कहा कि अपनी परंपरा से प्रेम करते हुए कभी भी दूसरे की परंपरा की अवहेलना नहीं करनी चाहिए।
इस कार्यक्रम में दिव्या प्रसाद ने कहा कि भारतीय संस्कृति को दरकिनार कर हम प्रवासी संस्कृति या साहित्य को नहीं समझ सकते। कहीं न कहीं हर प्रवासी साहित्यकार गिरमिटिया ही है। सदीनामा के संपादक जीतेंद्र जीतांशु ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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