कविता सामाजिक सशक्तिकरण

सुषमा गुप्ता की कविताएँ

सुषमा गुप्ता II

1-सौभाग्य
 पहली दफा जब अपना पाँव
तुम्हारे पाँव की बगल में देखा
तब सब
गंगा घाट की
गारा घुली
मिट्टी में सन्ना था।
 
मैंने उसे देर तक देखा
और सोचा ..
 
इतनी सुंदर मेहँदी
पिया के नाम की
दुल्हन के पाँव में
सृष्टि के सिवा
कौन लगा सकता था भला!

2 -संपूर्ण
 तुम्हारी उँगलियों को
पहली दफा छूते हुए
मेरी उँगलियों को
एक दोस्त की दरकार थी
 
तुम्हारी हथेली ने
जब मेरी उँगलियों को
उस रौंदती भीड़ में
कस लिया
 
तब मैंने पाया
कि मेरी उँगुलियाँ
मेरे पिता
मेरे सखा
मेरे प्रेमी
और मेरे पुत्र के
हाथ में हैं
 
मैं उसी पल जान गई थी
कि सृष्टि में इतनी सम्पूर्णता
सिर्फ़ ईश्वर के पास है।

About the author

डॉ. सुषमा गुप्ता

error: Content is protected !!