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भारतीयता के गौरव का उत्सव मनाएं : राष्ट्रपति

फोटो साभार : डीडी न्यूज लाइव

अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश में कहा कि लोकतंत्र, न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व भारत के आधार हैं। इस मौके पर भारतीयता’ मनाने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि मानवता का महामारी कोरोना के खिलाफ संघर्ष अब भी जारी है। यह गर्व की बात है हमने इस महामारी के खिलाफ असाधारण दृढ़ संकल्प और कार्य क्षमता का प्रदर्शन किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि महामारी के कारण इस साल भले ही उत्सव में धूम-धाम कुछ कम हो, लेकिन हमारी भावना हमेशा की तरह सशक्त है।’ उन्होंने कहा, अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। संविधान में उल्लिखित मूल कर्तव्यों का पालन करने से मूल अधिकारों के लिए समुचित वातावरण बनता है। आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करने के मूल कर्तव्य को निभाते हुए हमारे करोड़ों देशवासियों ने स्वच्छता अभियान से लेकर  टीकाकरण अभियान को जन आंदोलन का रूप दिया है। ऐसे अभियानों की सफलता का बड़ा श्रेय कर्तव्यपरायण नागरिकों को जाता है।

  • राष्ट्रपति ने कहा कि महामारी के कारण इस साल भले ही उत्सव में धूम-धाम कुछ कम हो, लेकिन हमारी भावना हमेशा की तरह सशक्त है।’ उन्होंने कहा, अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। संविधान में उल्लिखित मूल कर्तव्यों का पालन करने से मूल अधिकारों के लिए समुचित माहौल बनता है। आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करने के मूल कर्तव्य को निभाते हुए करोड़ों देशवासियों ने स्वच्छता अभियान से लेकर  टीकाकरण अभियान को जन आंदोलन का रूप दिया है।

राष्ट्रपति ने कहा, गणतंत्र दिवस हम सबको एक सूत्र में बांधने वाली भारतीयता के गौरव का उत्सव है। 1950 में आज ही के दिन हम सब की इस गौरवशाली पहचान को औपचारिक स्वरूप मिला। भारत के लोगों ने एक ऐसा संविधान लागू किया जो हमारी सामूहिक चेतना का जीवंत दस्तावेज है।

राष्ट्रपति ने कहा, दो साल से भी अधिक समय बीत गया है, लेकिन मानवता का कोरोना के खिालफ संघर्ष अब भी जारी है। इस महामारी में हजारों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है। पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर आघात हुआ है। अभूतपूर्व विपदा का सामना करना पड़ा है। यह स्थिति, मानव जाति के लिए एक असाधारण चुनौती बनी हुई है।

उन्होंने कहा, ‘महामारी का सामना करना भारत में अधिक कठिन होना ही था। क्योंकि हमारे देश में आबादी का घनत्व बहुत अधिक है। विकासशील अर्थव्यवस्था होने के नाते हमारे पास इस अदृश्य शत्रु से लड़ने के लिए उपयुक्त स्तर पर बुनियादी ढांचा तथा आवश्यक संसाधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं थे। लेकिन ऐसे कठिन समय में ही किसी राष्ट्र की संघर्ष करने की क्षमता निखरती है। (स्रोत : एजंसी)

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