अश्रुत तत्क्षण

अब कभी लौट कर नहीं आएंगी मन्नू जी

फोटो- साभार गूगल

कभी इतने आत्मीय रिश्ते थे…। मन्नू जी के साथ राजेंद्र यादव की एक दुर्लभ तस्वीर।

अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। लेखिका मन्नू भंडारी का गुड़गांव के एक अस्पताल में सोमवार को निधन हो गया। वे 91 साल की थीं। ‘आपका बंटी’ और ‘महाभोज’ जैसे चर्चित उपन्यासों की रचयिता मन्नू जी कुछ दिनों से अस्वस्थ थीं। उनकी बेटी रचना यादव के मुताबिक वे दस दिन से बीमार थीं। उनका अस्पताल में इलाज चल रहा था।

मध्य प्रदेश के भानपुरा में तीन अप्रैल 1931 को जन्मीं मन्नू जी के ने विख्यात साहित्यकार राजेंद्र यादव से शादी की थी। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा अजमेर में ली। कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक किया तो बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित मिरांडा हाउस कॉलेज में पढ़ाया भी। राजेंद्र यादव को मन्नू भंडारी के साथ मिल कर ‘नई कहानी’ के नाम से हिंदी साहित्य में एक नई विधा का सूत्रपात करने का श्रेय दिया जाता है।

प्रमुख प्रकाशन ‘रॉली बुक्स’ ने इस साल शुरू में ‘वाइज विमन एंड अंदर स्टोरिज : द बेस्ट आॅफ मन्नू भंडारी’ प्रकाशित की थी, जिसका अनुवाद विद्या प्रधान ने किया था। मन्नू जी महिलाओं को एक नई रोशनी में चित्रित करने के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने लघु कथाएं, उपन्यास और नाटकों पर काम किया। उनके आख्यानों ने उन संघर्षों और कठिनाइयों को उजागर किया है जिनका महिलाओं ने लगातार सामना किया है।

  • मन्नू भंडारी का राजेंद्र यादव से रिश्ता जटिल रहा। बाद में वे व्यक्तिगत कारणों से वे उनसे अलग भी हो गई थीं। शायद यही वजह है कि एक लेखिका के रूप में मन्नू जी ने स्त्री-पुरुष संबंधों को गहराई से चित्रित किया। हालांकि राजेंद्र यादव भी इससे अछूते न थे। कसमसाहट इधर भी थी।

उनकी उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए उन्हें ‘दिल्ली शिखर सम्मान’ और केके बिड़ला फाउंडेशन के ‘व्यास सम्मान’ सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। मन्नू जी के प्रसिद्ध उपन्यास ‘यही सच है’ पर 1974 में रजनीगंधा नाम से फिल्म बनाई गई थी। इस फिल्म ने 1975 में कई फिल्मफेयर पुरस्कार जीते थे।

मन्नू भंडारी का राजेंद्र यादव से रिश्ता जटिल रहा। बाद में वे व्यक्तिगत कारणों से वे उनसे अलग भी हो गई थीं। शायद यही वजह है कि एक लेखिका के रूप में मन्नू जी ने स्त्री-पुरुष संबंधों को गहराई से चित्रित किया। हालांकि राजेंद्र यादव भी इससे अछूते न थे। कसमसाहट इधर भी थी। राजेंद्र जी की डायरी का एक अंश पढ़िए-

‘शायद मेरी इस मानसिक छटपटाहट को मन्नू समझ रही है। वह बैठ कर बातें करना चाहती है और मैं टाल देता हूं। एक बार तो उसने कहा था कि अगर आपको लगता है कि इस जड़ता और अवरोध से आप यहां से बाहर जाकर निकल सकते हैं तो नगीना के साथ कुछ दिन रह लीजिए। यह बात उसने किस यातना बिन्दु पर पहुंच कर कही होगी। लगता मुझे भी है कि शायद इस अंधे कुंए से वही साथ निकाल सकता है मगर हिम्मत नहीं पड़ी। मैं नगीना के साथ रहने दस दिनों को जाऊंगा यह कह कर मैं निकल सकता हूं।  चुपचाप चोरी छिपे जाऊं और भला मानुस बन कर लौट आऊं, यह तो हो सकता है। यही शायद होता भी रहा है। मगर कह कर खुलेआम जाना कैसा लगता है जाने चला भी गया तो शायद लौटने का मुंह नहीं रहेगा।’ (यह अंश पत्रिका तद्भव से)

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