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मैं सच बोलती रहूंगी : तसलीमा नसरीन

फोटो : गूगल से साभार

अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। लेखिका तसलीमा नसरीन ने राजधानी में आयोजित एक समारोह में कहा कि वे अन्याय और कट्टरपंथ के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखेंगी और सच बोलती रहेंगी। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी के बिना लोकतंत्र अर्थर्हीन है। पिछले ढाई दशक से निर्वासन में रह रहीं तसलीमा साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’ की ओर से आयोजित राजेंद्र यादव स्मृति समारोह को संबोधित कर रही थीं।

इस मौके पर हंस पत्रिका की ओर से प्रकाशित तीन पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। इनमें से एक किताब पिछले एक दशक में तसलीमा के लिखे गए और ‘हंस’ में नियमित रूप से छपे आलेखों का संकलन है। बाकी दो अन्य किताबों में हंस के शुरुआती बरसों में प्रकाशित लोकप्रिय कहानियों को अंग्रेजी भाषा में अनुदित कर संकलन के रूप में ‘द बेस्ट आफ हंस-वोल्यूम 1 एंड वोल्यूम 2’ शीर्षक से प्रस्तुत किया गया है।

फोटो-फेसबुक से साभार
  • साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’ की ओर से आयोजित राजेंद्र यादव स्मृति समारोह को संबोधित करते हुए बांग्लादेश की चर्चित लेखिका तसलीमा नसरीन ने कहा कि वे अन्याय और कट्टरपंथ के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखेंगी। वे सच बोलती रहेंगी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना लोकतंत्र को अर्थर्हीन बताते हुए लेखिका ने कहा, वे महिलाओं के अधिकारों, सच्चे धर्मनिरपेक्षतावाद, मानवाधिकारों और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए लगातार आवाज उठाती रहेंगी।

इस मौके पर तसलीमा ने कहा, अन्याय और कट्टरपंथ के खिलाफ मैं अपना संघर्ष जारी रखूंगी। मैं सच बोलती रहूंगी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना लोकतंत्र को अर्थर्हीन बताते हुए लेखिका ने कहा, वे महिलाओं के अधिकारों, सच्चे धर्मनिरपेक्षतावाद, मानवाधिकारों और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए आवाज उठाती रहेंगी। तसलीमा को 1993 में उनके चर्चित उपन्यास ‘लज्जा’ के प्रकाशन के बाद बांग्लादेश से निष्कासित कर दिया गया था।  

तसलीमा ने इस मौके पर अन्याय और कट्टरपंथ के खिलाफ अपने संघर्ष को जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई। चर्चित लेखिका अपने मुखर लेखन के लिए जानी जाती रही हैं। इसी कारण वे अकसर कट्टपंथियों के निशाने पर रहती हैं।

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