लघुकथा कथा आयाम

रक्त-पिशाच

सदानंद कवीश्वर II

मुख्यमंत्री का मेकअप अपने अंतिम पड़ाव पर है, आबनूसी चेहरे पर के गड्ढे भरे जा रहे हैं। कुछ ही देर बाद स्वराज मैदान में उनकी एक विशाल रैली है। इस रैली के अपने भाषण में वे कुछ आकर्षक परियोजनाओं की घोषणा करने वाले हैं। दरवाजे पर दस्तक हुई और उनका निजी सहायक सधे हुए कदमों से अंदर आकर उनसे धीमी आवाज में कहता है, ‘सर… स्वराज मैदान से कुछ ही दूरी पर पिछली तरफ नदी पर बना पुल टूट गया, सूरज को अर्घ्य देते कई लोग तथा कुछ स्थानीय और इस हादसे में मारे गए… शायद हमें रैली रद्दकरनी पड़े…।’
‘गधे के बच्चे…! इस तरफ दाढ़ी को ठीक से ट्रिम कर… सबको मरने के लिए यही प्रदेश मिलता है!’ मंत्री की झल्लाहट नकटे से मेकअप मैन को अंदर तक कंपकंपा गई।
‘सर, वो दुर्घटना आज ही सुबह…’
‘मैंने सुन लिया है, मुख्यमंत्री के तल्ख शब्द फूटे। मरने वालों के लिए राहत राशि की घोषणा को रैली के भाषण में जोड़ दो… पुल बना तब सरकार किसकी थी?’
‘आपने ही उस पुल का उद्घाटन किया था सर!’
‘बनना शुरू तो हमारी सरकार आने से पहले हो गया था न?’ मुख्यमंत्री मानो पुल में दरारें ढूंढने लगे।
‘ज..ज..जी…’
‘बस तो ठीक है’, मंत्री जी मुस्कराते हुए बोले, ‘रैली कैंसल नहीं होगी, इलेक्शन आने वाले हैं, इस क्षेत्र के विधायक से कहो, अस्पताल का दौरा करे, रैली में उसकी शक्ल नहीं दिखनी चाहिए, उसकी जीत पक्की है।’ दरार मिलते ही मंत्री उसपर ताबड़तोड़ चोट करने लगे।
‘सर मूंछों का लाल रंग थोड़ा और डार्क कर दूं, चेहरे का लुक नेचुरल दिखेगा’, भरसक प्रयत्न के बाद भी मेकअप मैन लहजे को व्यंग्यात्मक बनने से रोक नहीं पाया।

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ashrutpurva

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