अश्रुत पूर्वा संवाद II
नई दिल्ली। हिंदी ने कभी देश को तोड़ने का काम नहीं किया। इसने तो हमेशा जोड़ने का काम किया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने पिछले दिनों यह बात कही। वे दिल्ली विश्वविद्यालय के काउंसिल हाल में पुस्तक ‘विद्रोह के कवि : निराला’ के लोकार्पण समारोह में बोल रहे थे।
बतौर मुख्य अतिथि प्रो. सिंह ने कहा कि निराला बेबाक होकर लिखते थे। उनकी निडरता को याद करते हुए उन्होंने कहा कि हमें इक्कीसवीं सदी में ऐसे ही निराला की आवश्यकता है। कुलपति ने कहा कि हिंदी भारत की भाषा है। यह जन-जन की भाषा है। जो भाषा लोगों की होती है, उसे किसी के अहसान की जरूरत नहीं। उन्होंने कहा कि निराला विद्रोह के कवि हो सकते हैं, मगर उनकी नजर में वे कर्म के कवि हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित इस लोकार्पण समारोह में एसओएल की निदेशक पायल मागो, प्राक्टर रजनी अब्बी, दक्षिणी परिसर के निदेशक प्रो. श्रीप्रकाश सिंह, रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता और कल्चर काउंसिल के अध्यक्ष अनूप लाठर मौजूद थे।