अंजुम बदायुनी II मशीख़तों को फ़रोग़ देना नहीं है हुस्ने – विक़ार मेरान इतनी हल्की...
ग़ज़ल/हज़ल
अनीस ‘मेरठी’ जी की तीन ग़ज़लें
अनीस ‘मेरठी’ II ..जब शबे फुरक़त किसी की मुन्तज़िर होती है आँख ,तब खुले दर से लिपट कर...
अंजुम बदायुनी II मशीख़तों को फ़रोग़ देना नहीं है हुस्ने – विक़ार मेरान इतनी हल्की...
अनीस ‘मेरठी’ II ..जब शबे फुरक़त किसी की मुन्तज़िर होती है आँख ,तब खुले दर से लिपट कर...