अश्रुतपूर्वा II
नई दिल्ली। हिंदी के पक्ष में एक संसदीय समिति ने एक बड़ी बात कही है। समिति ने सिफारिश की है कि हिंदी-भाषी राज्यों में आईआईटी जैसे तकनीकी और गैर-तकनीकी उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा का माध्यम हिंदी और देश के अन्य हिस्सों में शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा होनी चाहिए। उसने यह भाी कहा है कि हिंदी संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में से एक होनी चाहिए।
बता दें कि पिछले महीने राष्ट्रपति को प्रस्तुत की गई अपनी 11वीं रिपोर्ट में राजभाषा पर संसदीय समिति ने सिफारिश की थी कि सभी राज्यों में स्थानीय भाषाओं को अंग्रेजी पर वरीयता दी जानी चाहिए। इसमें समिति ने यह भी सुझाव दिया कि सभी तकनीकी और गैर-तकनीकी संस्थानों में पढ़ाने के लिए हिंदी या स्थानीय भाषा का उपयोग किया जाना चाहिए और अंग्रेजी के प्रयोग को वैकल्पिक बनाया जाना चाहिए। इस समिति के अध्यक्ष गृह मंत्री हैं।
संसदीय समिति के उपाध्यक्ष बीजू जनता दल नेता भृर्तृहरि महताब ने बताया है कि समिति ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार सिफारिशें तैयार की हैं। इसमें सुझाव दिया गया है कि शिक्षा का माध्यम आधिकारिक या क्षेत्रीय भाषा होना चाहिए। समिति ने सिफारिश की थी कि हिंदी भाषी राज्यों में आईआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम हिंदी और भारत के अन्य हिस्सों में उनकी संबंधित स्थानीय भाषा होनी चाहिए।
महताब ने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों में केवल 20-30 प्रतिशत ही हिंदी का प्रयोग हो रहा है, जबकि शत-प्रतिशत किया जाना चाहिए था। सदस्य रीता बहुगुणा जोशी ने कहा, सिफारिशें नई शिक्षा नीति के अनुसार हैं, जिसमें क्षेत्रीय भाषाओं और हिंदी में समान रूप से शिक्षा देने पर जोर दिया गया है।
हिंदी भाषी राज्यों में आईआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम हिंदी और भारत के अन्य हिस्सों में उनकी संबंधित स्थानीय भाषा होनी चाहिए।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की है कि संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषाओं में से एक बनाया जाना चाहिए। महताब ने कहा, कुल 193 देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं, लेकिन कितने देश विदेशी भाषाओं को आधिकारिक भाषा के रूप में इस्तेमाल करते हैं। बीजद नेता ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) या रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) जैसे तकनीकी संगठनों में हिंदी का उपयोग 100 प्रतिशत है।
समिति की यह 11वीं रिपोर्ट थी और यह पांच साल में एक रिपोर्ट पेश करती है। हालांकि, इस बार तीन साल के भीतर समिति ने दो रिपोर्ट सौंप दी। समिति 1976 में राजभाषा अधिनियम, 1963 के तहत बनाई गई थी। इसमें संसद के 30 सदस्य शामिल हैं, जिनमें से 20 सदस्य लोकसभा और दस सदस्य राज्यसभा से हैं।
समिति ने कहा कि हिंदी भाषी राज्यों में जानबूझ कर हिंदी में काम न करने व़ाले केंद्र सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों को चेतावनी दी जानी चाहिए। अगर वे चेतावनी के बावजूद ऐसा नहीं करते हैं, तो इसे उनकी वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट में दर्शाया जाना चाहिए। (मीडिया में आई खबर से साभार)