समीक्षा पुस्तक

चुनावी समर में कसौटी पर ‘मनमोदी’

अश्रुतपूर्वा संवाद II

नई दिल्ली। पांच साल बाद एक बार फिर चुनावी समर में प्रधानमंत्री उतर चुके हैं। उनके विजयरथ के आगे कई चुनौतियां हैं तो  कई नाकामियां भी पीछा कर रही हैं। उन्हें हराने के लिए विपक्ष एकजुट है। उसके तरकश में आरोपों के कई तीर हैं। इस चुनावी युद्ध के बीच जनता की कसौटी पर न केवल सत्तारूढ़ दल बल्कि उनके अगुआ नरेंद्र मोदी भी हैं। रैलियों-सभाओं और भाषणों के बीच वरिष्ठ पत्रकार मुकेश भारद्वाज ने अपनी हालिया प्रकाशित पुस्तक में ‘मनमोदी’ के माध्यम से प्रधानमंत्री के 2014 से 2024 के कार्यकाल के बीच दस साल के बही-खाते को सामने रखा है।  
मुकेश भारद्वाज तीन दशक से पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्हें राजनीतिक रिपोर्टिंग का व्यापक अनुभव है। राष्ट्रीय समाचार पत्र ‘जनसत्ता’ के संपादक के रूप में उन्होंने देश की राजनीति और दल-दल में धंसते दलों और गिरगिट की तरह रंग बदलते नेताओं को करीब से देखा है। भाजपा की गठबंधन सरकार बनने के एक साल बाद श्री भारद्वाज ने मोदी सरकार के निर्णयों और आदेशों से देश पर पड़ रहे सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभावों का विश्लेषण करना शुरू किया।
सत्तारूढ़ राजग सरकार के कामकाज को परखने का सिलसिला नौ साल तक चला। पत्रकारीय धर्म निभाते हुए लेखक श्री भारद्वाज ने अपने नियमित स्तंभ में जहां मोदी सरकार के फैसले का विवेचन किया, वहीं उनके निर्णयों  के प्रतिकूल असर पर सवाल भी खड़े किए। वे निरंतर बेबाकी से लिखते गए और अब यह एक पुस्तक ‘मनमोदी’ के रूप में सामने है।
आज जब सत्ता के खिलाफ बोलने से लेखक-पत्रकार हिचकते हों और कुछ भी लिखने से डरते हों, ऐसे दौर में निष्पक्ष होकर लिखना निश्चय ही साहस की पत्रकारिता है। यह मुकेश भारद्वाज ही थे जिनके ‘एडिटर डेस्क’ की स्याही कभी नहीं सूखी। वे पन्ने दर पन्ने लिखते रहे। जिस गतिशीलता से प्रधानमंत्री काम कर रहे थे, उसी तरह श्री भारद्वाज के कलम की निरंतरता बनी रही। वे निर्बाध लिखते रहे। उन्होंने महंगाई से लेकर मणिपुर तक का मुद्दा उठाया।
ये मुकेश भारद्वाज ही थे, जिन्होंने  2019 में भाजपा की जीत के बाद लिखा- ‘जो जीता वहीं नरेंद्र।’ इस पुस्तक में वे लिखते हैं, हर तरफ विजय गान था। इस लोकसभा चुनाव के बाद मोदी एक महानायक के रूप में उभरे। धुर विरोधी पस्त हुए। सच ही है कि विधायिका से लेकर कार्यपालिका उनके आगे नतमस्तक थी। श्री भारद्वाज ने लिखा है- विरोधी एक बात में सच साबित हुए कि मोदी पार्टी से भी बड़े हो गए। पार्टियों को ऐसी साख बनाने में बरसों लग जाते हैं। लेकिन मोदी ने अपने अगले पांच साल के कार्यकाल में यह कर दिखाया। कैसी भी स्थिति के लिए मोदी के कहे को अटल माना जाने लगा।
अब यह पांच साल का यह कार्यकाल भी पूरा हो चुका है। मगर कोई दो राय नहीं कि मोदी सरकार ने साबित कर दिया कि एक मजबूत सरकार के क्या मायने होते हैं। यह इस सरकार ने फौरी तीन तलाक के निषेध के लिए नए कानून ने साबित कर दिया। मगर लेखक ने नई संसद और इस के नाम ‘सेंट्रल विस्टा’ पर सवाल किया। उन्होंने रातों-रात लगाई गई नोटबंदी पर भी सवालिया निशान लगाए। इस फैसले का भूत सत्ता का दूर तक पीछा करता रहा। कालेधन के साम्राज्य को हल्की खरोंच तक नहीं आई।
सरकार अच्छे दिन के नारे लगा कर आई थी- बहुत हुई महंगाई की मार…। मगर क्या हुआ। आज नौकरी करने वालों की कमाई घट गई है। महंगाई चरम पर है। डॉलर के मुकाबले रुपया बेहाल है। इसी बीते सालों में लोगों ने कोरोना का बुरा दौर देखा। इस दौरान लाखों लोगों की नौकरियां गर्इं। बेरोजगारी बढ़ती चली गई। लेखक ने इसी पुस्तक में लिखा है कि किस तरह सरकार ने र्इंधन तेलों के दाम बढ़ाने शुरू किए। वहीं खाद्य तेलों से लेकर रसोई गैस के दाम बढ़ने का सिलसिला थमा नहीं। महंगाई की मार से मध्य वर्ग लड़खड़ा गया। गरीब मजदूर और किसान और बेहाल हो गए। उनके वोटों से आई मोदी सरकार उन्हें लेकर ही बेपरवाह रही।
इसी देश ने देखा कि किसानों के कड़े विरोध के कारण तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा। मुकेश भारद्वाज ने ‘मनमोदी’ में लिखा है- प्रधानमंत्री का माफी मांगना उस जन चेतना का सम्मान है जो किसानों ने अपने एक साल के संघर्ष की बदौलत तैयार किया। एक पत्रकार के रूप में श्री भारद्वाज ने सरकार के हर फैसले को जिस निष्पक्षता से परखा और उस पर लिखा उससे इस पुस्तक की विश्वसनीयता बढ़ गई है।
कोई 479 पृष्ठ की इस किताब में मुकेश भारद्वाज का हर आलेख राजनीति का एक अध्याय है। इसमें जहां आम आदमी के दुख-सुख और संघर्ष की चिंता है, वहीं सरकार के कार्यों का लेखा-जोखा भी है। यह किताब इंडिया नेटबुक्स ने छापी है। पुस्तक का मूल्य कम होता तो बेहतर होता।  

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