अश्रुत पूर्वा II
नई दिल्ली। पिछले कुछ सालों में युवाओं में पाचन संबंधी समस्याएं बढ़ी हैं। बाल रोग विशेषज्ञ लोगों को आगाह कर रहे हैं कि कि वे युवाओं में पाचन समस्याओं को देखते हुए वे अभी से बच्चों के पेट के स्वास्थ्य पर ध्यान दें। डाक्टरों का कहना है कि बच्चों में कब्ज, हाइपरएसिडिटी और दस्त आम समस्याएं हैं। कब्ज 30 फीसद बच्चों को प्रभावित करता है।
चिकित्सक कहते हैं कि बच्चों में पेट दर्द का सबसे आम कारण आंत संबंधी रोग है। इसे ही अनदेखा कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि हाइपरएसिडिटी भारत में 22-25 फीसद शिशुओं को प्रभावित करती है, जबकि डायरिया से देश में हर साल पांच साल से कम उम्र के करीब तीन लाख बच्चों की मौत हो जाती है।
बच्चों में पाचन स्वास्थ्य के महत्व के बारे में बाल रोग विशेषज्ञ कहते हैं कि शुरुआती बरसों में डायरिया बहुत ही आम समस्या है। जरूरी नहीं कि यह दांत निकलने से संबंधित हो। ऐसे में ओआरएस, प्रोबायोटिक्स और पिछले तीन महीनों में नहीं दिए जाने की स्थिति में जिंक देना शुरू कर देना चाहिए। इसे ठीक होने में पांच से सात दिन लग सकते हैं और एंटीबायोटिक्स शुरू करने की जल्दबाजी न करें, जब तक मल में खून न हो।
यह भी महत्त्वपूर्ण है कि बच्चों को रोटावायरस और खसरे के टीके समुचित रूप से लगे हों। इससे दस्त को रोकने में काफी मदद मिलती है। पाचन संबंधी समस्याओं के किसी भी लक्षण को देखने या टीकाकरण से संबंधित जानकारी के लिए बाल रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। नौ महीने से कम उम्र के शिशुओं में हाइपरएसिडिटी और रिफ्लक्स भी आम समस्याएं हैं। उनमें से ज्यादातर उम्र और उचित आहार के साथ ठीक हो जाएंगे।
हमारी आंत के अंदर अरबों बैक्टीरिया रहते हैं। जो यह सोचते हैं कि बैक्टीरिया केवल खराब किस्म के होते हैं, उन्हें फिर से सोचने की जरूरत है। हमारी आंत में बैक्टीरिया का एक पारिस्थितिकी तंत्र पनपता है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत अहम है, खासकर हमारे विकासशील बच्चों के लिए। अगर बच्चों के पेट की सेहत सामान्य हो तो मां हमेशा खुश रहती हैं। और अगर बच्चों की आंत स्वस्थ है तो वे अच्छा खाना खा सकते हैं और पोषण का स्तर बनाए रख सकते हैं। हम सभी के स्वस्थ रहने के लिए आंतों का स्वास्थ्य सबसे महत्त्वपूर्ण है। आंत दूसरा मस्तिष्क है।
बच्चों में आंतों की आम समस्याएं दस्त, पेट में दर्द, कब्ज और मतली हैं। बच्चों का पेट ठीक रहता है तो माताओं की भी सेहत ठीक रहती है। असुगम पाचन, पेट में दर्द, खराब प्रतिरक्षा और नींद, मनोभाव में उतार-चढ़ाव और सामान्य थकान आम तौर पर आंत के समुचित रूप से काम नहीं करने के लक्षण के तौर पर देखे जाते हैं। इन सभी का किसी भी व्यक्ति, विशेषकर बच्चों के समग्र कल्याण पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि बच्चों के आंत के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के कई तरीके हैं जैसे स्तनपान, उनके आहार में अधिक फाइबर शामिल करना, वसायुक्त खाद्य पदार्थों में कटौती करना और प्रोबायोटिक्स का चयन करना। (खबरों के आधार प्रस्तुति)
बच्चों में पेट दर्द का सबसे आम कारण आंत संबंधी रोग है। इसे ही अनदेखा कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि हाइपरएसिडिटी भारत में 22-25 फीसद शिशुओं को प्रभावित करती है, जबकि डायरिया से देश में हर साल पांच साल से कम उम्र के करीब तीन लाख बच्चों की मौत हो जाती है।