राजकुमार गौतम II हरनाथ के लिए घर लौटना भी क्या किसी पराक्रम से कम था ! घर लौटना एक विवश अनिवार्यता...
कहानी/लघुकथा
‘वो पगली’
बिम्मी कुँवर सिंह II धूप पड़ती थी तो पड़ती ही रहती थी जैसे उसको पड़ने का मशगला हो आया हो ,उसकी तपिश...
वंचित
रण विजय II ऐसा पहली बार नहीं हो रहा था, पिछले 2-4 वर्षों में यह रीतापन उसे बार-बार महसूस होने लगा...
‘एवटाबाद हाउस’
डा. दीप्ति गुप्ता II छ: हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर बर्फ़ीली पहाड़ियों की गोद में बसी गढ़वाल...
द लास्ट कोच
संजय स्वतंत्र || किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार… लंबे अंतराल के बाद दिल्ली मेट्रो में मेरी पहली...
सोफिया आ रही है
संजय स्वतंत्र || नींद खुली तो आकाश ने हमेशा की तरह खुद को अकेला पाया। कमरे में सन्नाटा पसरा था। वह...
गुलमोहर की शाम (फ़्लैश फिक्शन)
अनिमा दास || ‘मम्मी ‘! एक अंकल आये हैं आपसे मिलने जो कल कॉलेज फंक्शन मेंं मेरी...
आधे-अधूरे होने का एहसास’
राजगोपाल सिंह वर्मा || प्रेम ऐसा अहसास है जब होता है तो सब बंधनों को पहले चोरी छिपे, थोड़ी सौम्यता...
आदमी एक लघुकथा
अजय कुमार II रोज लगभग शाम सात बजे के आस पास मेरे कमरे पर एक नियमित दस्तक होने लगी थी। वह अंदर आते...
मां जियेगी तो जियेंगे हम
संजय स्वतंत्र II गंगा-यमुना इन दोनों नदियों को लेकर मैं बेहद भावुक हूं। वैसे तो हम सभी भारतीय दिल...
